ग़ज़ल
बस्तियां रौंद के क़ातिल हर सिमट से आयेंगे,
और मासूम बच्चों को वो पहरों रुलायंगे,,
उस दौर में फरिश्तों को लड़ने भेजा या ख़ुदा,
हम इस उम्मीद पे बैठे है फ़रिश्ते कब आयेंगे,,
नज़रें उठा के देखो कि हर तरफ है ख़ामोशी,
आसार कह रहे हैं कि अब तूफ़ान आयेंगे,,
भटकी हुई कौमों को है मिटटी में मिलाया,
इस अंजाम से अपने को कब तक बचाएंगे ,,
बदलते हैं सहूलियत के लिए आयीन के असूल,
फ़ना हो जाएँ ये रहनुमा वो दिन कब आयेंगे,,
खून से रंग गे हैं अब खुद हाकिम के हाथ,
अच्छे इंसान इस दौर में कहाँ से आयेंगे,,
तनवीर जिस राह पे चल निकला है अब सोच,
वतन पे मरने के दिन कब नज़दीक आयेंगे,, ........तनवीर सलीम (२००७)