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TanvirSalim1
on 19/2/14
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ग़ज़ल
जेलें भरने से तहरीक कभी कुचली नहीं जाती,
असलहों के ज़ोर पे जंगें कभी जीती नहीं जाती,,
तुम्हें क्या झोंक दो लोगों को मैदान लड़ाई में,
फौजों को बढ़ा देने से बाज़ी पलटी नहीं जाती,,
बमों को जिस्म से बांधे हुए मासूम हैं बैठे,
मायूसी में मिट जाने की ख्वाहिश देखी नहीं जाती,,
बने हो क्यों दुश्मन ज़रा तो अक़्ल से काम लो,
इतनी कम अक़ली किसी कौम में पायी नहीं जाती,,
हो जिस शाख पे बैठे उसे तुम काटते क्यों हो,
पुरानी आदतें इन्सान की बदली नहीं जाती,,
बे गुनाहों के खून को तुम जिहाद का नाम देते हो,
मगर जन्नत इतनी आसानी से तो पायी नहीं जाती,
तनवीर तू रख हिम्मत उठा अब हाथ दुआओं का,
जो निकली हो दुआ दिल से कभी ख़ाली नहीं जाती,
तनवीर सलीम (2007)