हिंदुस्तान की सर ज़मीन को 1983 में छोड़ उच्च शिक्षा की लालसा लिए अमेरिका जा कर एक नयी innning की शुरुआत की, जो दुनियादारी की नज़र से अगर देखा जाए तो बहुत कामयाब भी रही। बहुत कुछ सीखने और जानने को मिला। फिर एक इच्छा जागी, जिस ने क़दमों को पुराने चले हुए रास्तों पे एक बार फिर वापस मोड़ दिया। कुछ नयी चुनौतिया आती गयीं, जिस ने ज़िन्दगी का रुख ही बदल दिया। "खोने और पाने" के खेल से परे हट कर देखा तो जिज्ञासाएं मन को डसने लगीं, और नयी उमंगों ने दिल और दिमाग के साथ अठखेलियाँ करना शुरू कर दिया। आगे क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा?