लोकतंत्र में परिवाद और वंशवाद कैसे? भारत तो भारत अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही दृश्य है. क्या कारण है की हम कहीं ना कहीं व्यक्ति पूजा के रोग से ग्रसित हैं? हमारे अंदर अपने लिए बैठी हुई हीन भावना या एहसास कमतरी विवश कर देती है दूसरे को भगवान मान लेने के लिए.
हमें इस से निकलना होगा और सवयं में आत्म विश्वास पैदा करना होगा, नहीं तो हम पूजते रह जायें गे उनको जो बहुत माने में हम से श्रेस्ट नहीं हैं....