राहुल गांधी को जनता से जुड़ने के लिए क़रीब दस साल का वक़्त मिला जिसमें वो सफल नहीं रहे. इसे उनकी कमी माना जा सकता है. और इन विफलताओं के बाद प्रमोशन कुछ समझ में ना आने वाली बात है. हार की वजह दूसरों पे धकेल देना क्या पार्टी के लिए घातक नहीं होगा. आज सोनिया गाँधी फिर से मैदान में इसी कारण से आई हैं क्योंकि खुद उनको अपने बेटे पे पूरा विश्वास नहीं है. देखना है राहुल गाँधी इस अवकाश के उपरांत कौन सी जादू की छड़ी से लैस हो मैदान में आते हैं-तनवीर सलीम