"बुनकरों" के उन हाथों के नाम जिन के बारे में किसी ने कहा है:
मेरा यह हाथ कि जिस से तुम्हें ख़त लिखता हूँ,
चले करघे पे तो उसको यद -ए बैजा कहिये,,
छूए जैकार्द तो बहजाद से कीजिये ताबीर,
खाम रेशम पर पड़े तो दम-ए-ईसा कहिये,,
मिस्र पहुंचे तो यही दामन-ए-युसूफ होकर,
दस्त -व-बाज़ुये जुलेखा की तमन्ना बन जायें,,
गेरुआ चीर बने वन में यह सीता जी का,
नज्द पहुंचे तो नक़ाबे रूखे लैला बन जाए,,,,,