निराशा में डूबे देश वासियों को आशा की किरण बन नरेंद्र मोदी ने मोह लिया और बिठा दिए गये सिंघासन पे वे पूर्ण बहुमत के साथ. उम्मीदें इतनी जल्दी टूट जायें गी किसी ने ऐसा सोचा ना था. साल भर का समय बता नहीं सकता आने वाले दिनो के बारे में, मगर "अच्छे दिन" का वादा बहुतों को छलावा सा प्रतीत होने लग गया है. चुनावी जुमलों पे चुनाव जीते जा सकते है पर दोबारा काठ की हांड़ी चढ़ सकेगी या नही, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं रह गया है?
बात जब हमारे भविष्य की हो तो उसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है. 2014 के बाद से गंगा और जमुना में बहुत पानी बह गया है और धुन्ध छट सी रही है, पर क्या होगा गंगा-जमुनई तहज़ीब का, जिस पे हम और हमारे पुरखों को गर्व था? -तनवीर सलीम