नींद जैसे पलकों पे दस्तक दे बता रही है कि रात गहरी होती जा रही है.नीला आसमान अब और सयाह हो चुका है. तारे भी परेशान है की आख़िर माजरा क्या है?
वक़्त रुक जाने के लिए बेताब है पर रुक सकता नहीं- आख़िर निभाना सबको है दस्तूरों को..कोई खुद मुख़्तार नहीं...
सफ़र पे हैं ना जाने कितने तारों की किरणें....ना जाने कब से चली हैं ज़मीन की ओर ...पर कब पहुँचेंगी उन्हें खुद पता नहीं..हमें क्या है लेना देना इन सब बातों से.....
जिन पे अपना अख्तियार नहीं उन पे क्यों परेशन होना है.....ऐसा ही होता आया है..होता रहे गा...ये दुनिया है...बड़ी अजीब सी दुनिया है..बड़ी अजीब सी दुनिया है...गुड नाइट