कॉंग्रेस पार्टी का सफ़ाया 1977 में भी हुआ था पर वो वापस सत्ता में जल्दी आ गयी. सत्ता में वापस आने का कारण जनता पार्टी की आपसी खिचतानी थी. आज कॉंग्रेस का वापस आना अपने बल पे होगा, क्योंकि बी जे पी में कोई आंतरिक कलह की आशंका नहीं है-कम से कम नरेन्द्रा मोदी के होते हुए तो बिल्कुल ही नहीं है.
मगर इसका ये मतलब नहीं की कॉंग्रेस पार्टी अपनी अंतिम साँस ले रही है. कॉंग्रेस पार्टी के भी "अच्छे दिन वापस आ सकते है" अगर पार्टी अपनी ग़लतियों से सीखने के लिए तत्पर है.
पार्टी को हर राज्य में शक्तिशाली नेताओं को आगे आने का अवसर देना होगा जैसा की इंदिरा गाँधी के समय में था. इसके साथ ही साथ उन तमाम नेताओं को जिन में अहंकार कूट कूट कर भर गया है उनको कूड़ेदान में डालना ज़रूरी है. इन नेताओं के पास अथाह दौलत कहाँ से आई है इसकी भी छानबीन ज़रूरी है. दौलत के नशे में मदमस्त ये लीडर आज अपने को सेवा भावना से दूर रख भोग का जीवन वयतीत कर रहे हैं. पार्टी के हारने या जीतने का इनके सेहत पे कोई असर नहीं करता क्योंकि इनके ख़ज़ाने भरे हुए है.