इधर पिछले एक साल से भारत वर्ष में रह कर पूर्वांचल की युवा पीढ़ी को करीब से देखने का अवसर मिला। सच पुछा जाए तो यहाँ का नौजवान जहाँ एक ओर पुरानी रीति रिवाजों को तोड़ कर अपने लिए एक नया मार्ग बनाता दिखा, तो दूसरी ओर वही "सब चलता है" की मानसिकता को ध्वंस करने में नाकाम भी दिखा। इसका मुख्य कारण है, इन के पास किसी रोल मॉडल का न होना। जिनके पास सुविधा है, वह पहली फुरसत में ही रोज़ी रोटी और अच्छे भविष्य की तलाश में पलायन कर जाते हैं। जो बच गए, वह आज नहीं तो कल, उसी रंग में रंग जाते हैं, जिस से वह दूर भागना चाहते थे। आवश्यकता है उन में एक नयी आशा को जगाने की, ताकि हर कोई वह बन सके जिस की उसे कामना है। यह तभी संभव है जब हम अपने को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकें। अभी देर नहीं हुई है, कल खिलने वाली कोंपलों को मुस्कुराना होगा,नए क़दमों को इतराना होगा, और अपने भविष्य को सवारना होगा। इस काम को करने कोई नया मसीहा नहीं आएगा। पूर्वांचल की युवा को एक शक्ति के रूप में उभर कर पुरानी विचार धारा के लिबास को उतार कर परिवर्तन या बदलाव को ग्रहण करना होगा, अन्यथा आने वाले कल का युवा उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।