इतनी सारी कुर्सियाँ और उस पे बैठे ना जाने कितने लोग,ये कमिशन और वो कमिशन, पर कोई नहीं है जो साधारण जनता के बारे में कुछ सोच सके. लाल बत्ती, पीली बत्ती, और ना जाने क्या क्या, मगर किसी को सुध बुध नहीं है उनकी जो वोट दे कर ना जाने कैसे कैसो को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है. ऐसे में बात बने भी तो कैसे? कोई रास्ता निकले भी तो कैसे?