आज बात करते हैं उन मुसलमानों की जिनके पास पाकिस्तान जाने का विकल्प था, परंतु उन्होंने यहाँ रहने का फैसला किया. नहीं छोड़ सकते थे अपने खेत और खलिहानों को, अपने घर और अपने पडोसी को. सब एक थे सदियों से. कैसे टूट जाता वह प्यार मोहब्बत का नाता. जिस मिटटी में जनम लिया उसी में दफन होने की चाह ने उनको यहाँ से जाने न दिया.
फिर देश बदलने लगा. लोग हिन्दू और मुस्लमान होते होते, सिर्फ हिन्दू या मुस्लमान हो गए. ये सब कुछ अपने आप नहीं हुआ. किया गया, धीरे धीरे. चुनाव को जीतने की विविशता ने क्या क्या नहीं बना दिया इंसान को?
मुस्लमान छला गया अपने रहनुमाओं से. उसके वोट को बेचने वाले तो बहुत आये और मुस्लमान अपने वोट को बहुत ही सस्ते में बेचता चला गया.
कब मिलेगा मुस्लमान को उसका रहनुमा?..Good Night..