अगर आप की उम्र चालीस साल से ज़यादा है तो मेरा मानना है की आप की सोच अपने ही दायरों में संकुचित और सिमटी होगी। काफी हद तक आप पुराने रूढ़िवादी ख्यालों को ढो रहे होंगे। हमारी आशा का केंद्र है आज की युवा पीढ़ी- जो धर्म, जाति के जाल से निकल एक नयी भाषा बोलने को तैयार है। इन ही के कन्धों पे नए भारत की ज़िम्मेदारी है। आइये रास्ता बनाये इन लोगों के लिए। अब भी वक़्त है की हम अपनी सोच को बदल दें और उन जंजीरों को तोड़ दें जो हमारे क़दमों को आगे बढ़ने में बाधा सी बन बैठी हैं। क्या खोया और क्या पाया की कसौटी पे देखा जाए तो हम ने अपनी हट धर्मी के कारण खोया ही ज़यादा है। चलो इस रीति को छोड़ कुछ नया कर दिखाया जाए।