Few lines from my old poetry, for the prevailing situation today:
वसुधैव कुटुंब कम मन्त्र को भूल चले तो फिर क्या होगा?
पडोसी की पीड़ा जो तुम न जान सके तो फिर क्या होगा?
जब "निर्दोष का वध है मानवता का वध" तो फिर क्या होगा?
धर्म जाति के झगरे में उलझे बैठे तो तेरा फिर क्या होगा?.-तनवीर सलीम