My grandfather and late Sanjay Gandhi....
अगर आज संजय ज़िंदा होते तो भारत की डेमॉक्रेसी कुछ और तरह की होती, या शायद ना ही होती. संजय गाँधी के बारे में मेरा इतना कहना ही काफ़ी है.
मेरे दादा ने उनके दरबार में हाज़िरी लगाने से साफ माना कर दिया था और यही कारण था की मेरे दादा जी की राजनीति पारी पर दिल्ली दरबार ने पूर्ण विराम लगा दिया था. दिल्ली दरबार को ईमानदार राजनेता से ज़यादा वो पसंद थे जो उनके तलवे चाटें..या उनके जूते उठायें...
ये काम मेरे दादा स्वर्गिया इस्तफा हुसैन को पसंद नहीं था....इसी कारण मेरे दिल में आज मेरे दादा के लिए बेपनाह इज़्ज़त है...ऐसे होते थे बीते हुए कल के राजनेता