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by TanvirSalim1
on 20/2/14
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KAVITA.....

संग तराश के परिश्रम से पत्थर पूजा योग्य हो जाता है,
सवर्ण भी अग्नि में जल कर आभूषण का रूप पाता है,
घास फूस चुनते हैं पच्छी तो घोंसला संभव हो पाता है,
कर्तव्य पालन करे प्राणी देखा सपना सच हो पाता है,,

बन के माया नगरी के वासी हमें ऐसा क्यों हो जाता है?
अच्छे बुरे से अवगत परन्तु ह्रदय भ्रष्ट क्यों हो जाता है?
धन के चकाचोंध में विद्या दीपक मधिम क्यों हो जाता है?
सच्चे पथ पे चलने वाले का जीवन दुर्लभ क्यों हो जाता है?

आवश्यक नहीं जीवन में ही स्वर्ग का मिल पाना मानव को,
संभव नहीं अच्छे कर्मों का फल तुरंत मिल पाना मानव को,
प्रतीक्षा भी एक तप है यह जा कर बतलाओ हर मानव को,
स्वर्ग का मृत्य बाद प्रण है जा कर बतलाओ हर मानव को,

वसुधैव कुटुंब कम मन्त्र को भूल चले तो फिर क्या होगा?
पडोसी की पीड़ा जो तुम न जान सके तो फिर क्या होगा?
जब निर्दोष का वध है मानवता का वध तो फिर क्या होगा?
धर्म जाति के झगरे में उलझे बैठे तो तेरा फिर क्या होगा?.....