About Bunkars-वोह दौर ही कुछ और था। 1971-72 की बात रही होगी। लखनऊ में विधान सभा से सामने इक हुजूम था। बुनकर सडकों पे निकल आये थे, अपनी मांगों को लेकर के। उनके रहनुमा थे मेरे दादा जनाब इस्तफा हुसैन, वोह कांग्रेस में रह कर सरकार की मुखालफत करने की जुर्रत कर रहे थे। लगा दिया था अपना सियासी वजूद दांव पे, समाज के दबे और कुचले लोगों को ऊपर लाने की खातिर। शाएद इसी दबाव की वजह से जब इंदिरा गाँधी ने बीस सूत्री प्रोग्राम का एलान किया तो उसमें बुनकरों के लिए बहुत कुछ था। वोह दौर हथकरघा उद्योग का सुनहरा दिन था। आज फिर बुनकर भुकमरी का शिकार हो रहा है, अपने हाथ के हुनर को भूल गारा मिटटी कर रहा है बेचारा।
आज उसको फिर से ज़रुरत है किसी इस्तफा हुसैन की।