1857 में हम संख्या, बल और साधन होते हुए भी हार गये.फिर लग गये कितने दशक लाल क़िले पे अपना झंडा लगाने में. हारे इस कारण से क्योंकि सारा देश एक साथ नहीं उठ खड़ा हो पाया, और ना जाने कितनो ने आज़ादी के परवानों के साथ विश्वासघात किया. मिल गये थे वो अँग्रेज़ों के साथ, और नतीजे में झूल गये हज़ारों फाँसी के फंदे पे. निजी स्वार्थों के कारण ही उस समय कुछ लोगों ने अपनों का साथ देने के ब्ज़ाएे अँग्रेज़ों का साथ दिया. थी ना शर्म की बात? आज हम को मिलकर काम करना होगा, ताकि मिल सके आर्थिक और सामाजिक आज़ादी, सबको. नाकी कुछ को, जै हिंद- तनवीर सलीम......Good Night..