...................ग़ज़ल
एटमी ताक़तें ख़ाक हो जायें क्या ऐसा हो सकता है,
अमन का सूरज धूम मचाये क्या ऐसा हो सकता है,,
सूई घडी की भाग रही है आज मशीनी दुनिया में,
चलते -चलते यह थम जाए क्या ऐसा हो सकता है,,
यह तो शहर मशीनों का है हर तरफ शोर सरापा है,,
सकूं का इक घर मिल जाए क्या ऐसा हो सकता है,,
कानूनी दांव में उलझा रहता है हर इंसान यहाँ,
कोई इन्साफ का गीत गाये क्या ऐसा हो सकता है,,
खुश किस्मत वोह समझते है दौलत की नगरी में,
तनवीर दौलत से सकूं मिले क्या ऐसा हो सकता है?
-तनवीर सलीम