हॅंडलूम उद्योग पे चर्चा सत्तर के शतक से जारी है. जहाँ तक मुझे याद है एक बहुत विशाल आंदोलन का नेतृत्व किया था श्री इस्तफा हुसैन मरहूम ने और उनकी कोशिशों से इस सनत को इंदिरा गाँधी ने अपने बीस सूत्री कार्यकरम में शामिल कर इसे उन्नति के ऊँचे शिखर तक पहुँचाया. हर बजट में कुछ ना कुछ होता है इस उद्योग के लिए, मगर कारण क्या है की अपने पैरों पे खरा ना हो सका ये उद्योग? कहीं ना कहीं तो लोचा है ..मगर कहाँ? क्यों इसे हमेशा बैशाखी की ज़रूरत है?