हर अच्छी बुरी बात आरंभ कहीं से भी हो पर अंत धर्म पे हो रही है. विश्व के सभी धर्म के "अधिकांश" अनुयायी राग द्वेश और एक दूसरे के लिए घिरना से परे है, और मिल जुल कर रहते हैं, परंतु समाचार पे दृष्टि डालें तो प्रतीत होगा की धर्म का काम केवल एक दूसरे के बीच नफ़रत पैदा करना ही रह गया है.
हर धर्म का एक बहुत "छोटा" सा घटक ही ऐसा कार्य करता है जो धर्म की परिसीमा से परे है, पर बदनाम पूरा धर्म हो जाता है.आज दुनिया का हर पाँचवाँ वयक्ति इस्लाम धर्म का मानने वाला है, अगर ये सारे अपने धर्म से हट कर कुकर्म में लिप्त हो जाएँ तो दुनिया रहने योग्य ना रहे. मगर ऐसा नहीं है. इस्लाम शांति का धर्म है, पर इस्लाम के कुछ अनुयायी धर्म के मार्ग से विचलित हो गये हैं. वास्तव में वो इस्लाम के अनुयायी हैं ही नहीं, क्योंकि धर्म ऐसा नहीं बताता है, जो वो कर रहे है.