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TanvirSalim1
on 19/2/14
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सुबह होती है शाम होती है,
उम्र यूं ही तमाम होती है।
मगर बीच में एक दास्ताँ होती है। हम अपनी दास्ताँ को बनाने में सारी उम्र गुज़ार देते हैं।
वही किस्से, सुबह और शाम के। कभी नए, कभी पुराने। नए लोग , पुराने लोग, अच्छे लोग, बुरे लोग। यादें खट्टी और मीठी।
ज़िन्दगी जो बीत गयी, और दिन जो आने वाले है।
कैसे होंगे वो दिन?
किसी नदी के किनारे निकलते हुए सूरज की तरह, या शाम होने पे घोंसलों की तरफ लौट आते हुए परिंदों की तरह।
कैसे होंगे वो दिन?