रात और गहरी होती जा रही है. खामोशी अंधेरे की चादर ओढ़ जैसे लपेट रही है सारे कायनात को. सुबह का इंतेज़ार है, एक ऐसी सुबह जो फिर से सारे महॉल को भर दे एक नये साज़ से. क़दम फिर से थिरकने लगें, अंधेरा सिमटने लगे और फूल मुस्करा के, लहरा के इक साजिश मे लग जायें और तितलियाँ फिर से उनकी ओर लपक पड़ें...ऐसा हो कुछ कल का दिन....Good Night.