मुसलमानों के मुद्दे सिर्फ बाबरी मस्जिद, उर्दू, मुस्लिम पर्सनल law, अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ही नहीं है। उसके असल मुद्दे उसकी रोज़ी रोटी से जुड़े हैं। फिर सवाल सत्ता में भागीदारी का भी है।
मरहूम अशफाक हुसैन अंसारी ने जो की लोक सभा के सदर्स्य भी रहे हैं, ने साफ़ साफ़ लफ़्ज़ों में बताया था की अगर पहली से चौदहवीं लोक सभा की लिस्ट उठा के देखें, तो पायेंगे की अबतक चुने गए सभी 7500 सांसद में 400 मुस्लमान थे, इन 400 में 340 अशराफ, और केवल 60 पसमांदा तबके से थे। कहाँ गयी सत्ता में भागेदारी?
हालाँकि पसमांदा मुसलमानों की आबादी मुसलमानों की कुल का 85% होती है लेकिन सत्ता में , चाहे वोह न्याय पालिका , कार्य पालिका या विधायिका हो, या मुस्लिम कौम पे चलने वाले तमाम इदारे /संस्थान , उनकी नुमएंदगी न के बराबर है।
इस पर नज़र डालना होगा उनको जो सबको बराबर का हक दिलाने की बात करते हैं।
कोई भी भारत वासी चाहे वोह हिन्दू हो या मुसलमान उसे उसका हक मिलना ज़रूरी है।