मुंशी प्रेम चन्द्र की लिखी कथा "नमक का दरोगा" बचपन में पढ़ी थी - ये उस दौर का चित्रण करती है, जब दाल में कुछ काला था- आज जब सारी की सारी दाल ही काली हो चुकी है, तो बुद्धि ने मानो जवाब दे दिया है- "संपूर्ण क्रांति" का नारा जो की जय प्रकाश जी ने सत्तर के दशक में लगाया था, उससे भी बहुत से लोगों में आशा का संचार हुआ था, पर स्थिति में कोई सुधर न तब आया था, न अब आने को है- इस का कारण क्या है? अमेरिका में मैं दशकों रहा, पर वहां सामान्य जन जीवन में कभी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे का मुझे कभी दर्शन नहीं हुआ - आखिर यहाँ ही ये रोग कैंसर की तरह क्यों व्यापक है ? इसका उत्तर इतना सरल कदापि नहीं है- मैं समझता हूँ च्योंकि अमेरिका कि राजनिति भिन्न है, वहां पर राजनीति में कोई पैसा कमाने नहीं जाता है- जो जाते हैं वो पैसा दुसरे तरीकों से कमा सकने में सक्चम होते हैं - यहाँ मैंने देखा है कि यहाँ आम तौर पे आज का राजनेता वही है जो हर छेत्र में असफल हो चुका हुआ होता है, और हम बहुत शान से उस कि ताजपोशी कर देते है - तनवीर सलीम