भारत सांप्रदायिकता के ज्वालामुखी पर बैठा है. ज़्यादातर वक्त ये ज्वालामुखी शांत रहता है और इसलिए हमें आभास होता है कि सब कुछ सही है. पर बाद में जब आग लग चुकी होती है तो आभास होता है की वो तो तूफान के आने के पहले की खामोशी थी. भारत का विकास तभी संभव है जब दोनो धर्म के लोग इस बात को समझ सकें की बिना सब को साथ लिए विकास संभव नहीं है.