बिस्मिल आज के दिन गोरखपुर की जेल में फांसी के फंदे पे दशकों पहले झूल गए, ताकि हम लोग आज़ाद देश के वासी बन सकें। ऐसे न जाने कितने थे जिन्हॊने गुलामी को स्वीकार न किया। आज देश का संचालन हमारे और आप, यानि जनता के हाथों में जब है तो क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता है की हम कोशिश करें की उन शहीदों की कुर्बानी खाली न जाये। मगर हमें क्या, हम तो भोग, विलाग और माया मोह के जाल में इस प्रकार से फँस चुके है की आज सही और गलत की पहचान करने की भी तमीज़ हम में नहीं रह गयी है। आखिर यह क्यों है?