बचपन से देखता चला आया हूँ की रमज़ान के महीने में लोगों का ताँता लग जाता है जो घर घर जाकर मदद के लिए पैसा माँगते हैं. अच्छी बात है मगर क्या वजह है की आज तक इस क़ौम की हालत में सुधार क्यों नहीं आया है? कब बंद होगा घर घर जाकर माँगने का सिलसिला? कब हम अपने पैरों पे चलना सीख पायेंगे?
आसानी से मिल जाता है तो क्या खराबी है? खुदा के वास्ते ये मत कहना की हमारे साथ भेद बरता जाता है इस लिए हम इतने पीछे हैं....1947 के बाद पाकिस्तान से बहुत से रेफुजी (Refugee) यहाँ आए और अब किसी के मोहताज नहीं हैं...तो फिर हम आख़िर क्यों नहीं?