ट्रेन में बिहार का एक युवक जिसने अपने को जाती का कुर्मी बताया बहुत दिलचस्प बातें कर रहा था। सवाल भी खुद करता और जवाब भी खुद ही देता। पूछने लगा की मुस्लमान में क़द्दोवर नेता क्यों नहीं है? बताने लगा की कोई भी पार्टी नहीं चाहती की मुसलमानों का कोई ऐसा नेता पैदा हो जिसका की जनॉधार हो। क्योंकि मुसलमान अगर ऐसा लीडर पा गए तो वोह लीडर सबके लिए चुनाव्ती बन जाये गा। उसको थोड़ी भी समझ होगी तो किसी के साथ जुड़ के हुकूमत करने की स्थिति में हो जाये गा। फिर सब की दूकान बंद हो जाएगी। इसी लिए तमाम पार्टी वाले मुसमान का वोट पाने के लिए उसे टिकेट तो दे देते हैं मगर मौक़ा बे मौक़ा उसके पंख भी कुतरते रहते है।
कहने लगा की अगर आप लोगों में एकता आ जाये तो आप लोग बहुत कुछ कर सकते हैं, मगर आप में कोई कांशी राम नहीं है। फिर आप लोग बहुत जज्बाती लोग हैं। आप लोग अपने ही लोगों की टांग खीचने में सबसे आगे रहते हो। बताने लगा की मुस्लिम बाहुल्य वाले वार्ड में आप के इतने प्रत्याशी होते हैं की जीत कोई और जाता है। आप की वकालत कभी दिग्विजय सिंह करते है तो कभी मुलायम सिंह तो कभी वी पी सिंह। आज़म खान और इमाम बुखारी की लढाई में आप की कौम बेवकूफ बनती जा रही है। कहने लगा की जज़्बात से बाहर निकलो और गुना गणित में लग जाओ।