जीवन सिर्फ़ नाप-तौल का नाम तो नहीं. जीवन के बहुत कम रंग हमारे हाथों में बाक़ी बचे हैं. इसलिए जो भी हैं उन्हें ही समेट रखो तो बड़ी बात है. रंग चाहे होली के हों या राखी के धागे के या ईद की सेवाियों के, या मुहर्रम के सद्दे, ताज़िए...मस्जिद से अज़ान की आवाज़, गिरजाघर के घंटे की ध्वनि या मंदिर की शंखनाद..समेट लो हर वो चीज़ जिस से दिल को सकूँ मिले..नहीं तो खामोश, बेरंग और वीरान सी ज़िंदगी..क्या करोगे उसका?