चलें सब कुछ भूल के विकास की बात करें,क्योंकि हम तो अपनी बाज़ी खेल चुके. सवाल आने वाली पीढ़ी का है. हम उन्हें विरासत में क्या दे रहे हैं? शायद कुछ भी नहीं. चलें कुछ ऐसा करते हैं की कम से कम उनके अंदर एक उम्मीद तो पैदा हो की पूर्वाचाल में भी बहुत कुछ किया सकता है. ज़रूरी नहीं की अपनी धरती छोड़ किसी और देश,किसी और शहेर में प्लायन् करना पड़े...मगर कैसे?..बात इतनी आसान भी नही मगर नामुमकिन भी नहीं....आपको क्या लगता है?