गोरखपुर के रेलवे स्टेशन पे, एक ट्रेन जो मुंबई जाने वाली है, लंबी लाइने जनरल डिब्बे में घुसने के लिए. जितनी जगह डिब्बे में, उससे सौ गुना लोग लाइन में. कैसे होगा? बुलेट ट्रेन..जाने भी दो यार, जो है उसका सही बंदबस्त तो करो. देखता हूँ की सारे की सारे लोग डिब्बे में adjust हो जाते हैं. एक बैसाखी पे भिखारी भी, धीरे धीरे चलता हुआ डिब्बे में चढ़ जाता है. शायद मुंबई में उसे भी आशा है की उसका भी जीवन संवर सकता है. शायद किसी को इस बात की चिंता नहीं है की उनकी इतनी दुर्गत क्यों है? सब "चलता है", और चलता रहे गा...मैं देख रहा हूँ उस भारत को जो क्रांति से कोसो दूर है, यहाँ "सब चलता है" और ट्रेन चली जाती है. First AC में बहुत से लोग जानते भी नहीं की लाइने कितनी लंबी लगती हैं, वो किसी पत्रिका में बुलेट ट्रेन के बारे में पढ़ते पढ़ते आँख बंद कर लेते हैं...गुड नाइट..