गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फ़ायदा, मगर बात partion की अगर जो निकलती है तो झांक के देखना ही पड़ेगा उन दिनों की बातों में। बात सिर्फ नेहरु की प्रधान मंत्री बनने की महत्व आकांशा की नहीं थी- बात उतनी सीधी नहीं थी जितनी ऊपर से दिखती है। उस ग़लती के ज़िम्मेदार सभी थे,सिवाय मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के। पर उनकी आवाज़ नक्कार खाने में तूती साबित हुई, और सुनी नहीं गयी, और देश बाँट दिया गया, धर्म के आधार पर। जीत तो
किसी की नहीं हुई, पर हार गए हम सब। हार गयी हिन्दू -मुस्लिम की एकता की परम्परा, जो इस देश में सदियों से फलती और फूलती रही थी। वह ज़ख्म धीरे - धीरे नासूर बन गया, और आज बन गया है हमारे दामन पे लगा हुआ एक बदनुमा सा दाग। उस आग को आज भी हवा देकर जलाये रखा जाता है, ताकि घरों को फूँक कर, अवाम को बेवकूफ बना कर सिंघासन पर बैठ हुकूमत की जा सके-