क्या ओवैसी जैसे रहनुमा मुस्लिम समाज को अपनी तरफ ले जा सकने की सलाहियत रखते हैं या फिर मुलायम और मायावती जैसे नेता फिर मुसलमान वोटर को अपनी ओर ले जेया सकेंगे? जवाब आसान नहीं है. एक तरफ खाई है तो दूसरी तरफ अँधा कुआँ. जाए भी तो जाए कहाँ? आप की क्या राय है?