कुछ साल पहले टॉम आल्टर का ड्रामा "मौलाना" बोसटन में देखा था जिससे काफ़ी बातें इतिहास की मालूम हुई.
आज़ादी के समय का चित्रण था और मुख्या मुद्दा था पाकिस्तान का जनम. नेहरू और पटेल तो पहले ही पाकिस्तान बनने के पक्ष में हो चके थे, पर आख़िरी दम तक पाकिस्तान ना बनने देनी की लड़ाई लड़ता रहा मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद.
जब गाँधी ने भी साथ छोड़ दिया और पाकिस्तान का बनना तै हो गया तो आज़ाद की रही सही हिम्मत टूट गयी और वो अपने को छला सा महसूस करने लगे.
कलाम जैसा नेता फिर भारत में पैदा नही हुआ. आज भारत को तलाश है एक कलाम की.