आज का दौर कुछ ऐसा हो चूका है की हममें से न जाने कितनों ने आशा का साथ छोड़ निराशा के राग को अलापना शुरू कर दिया है, जो की ग़लत है.
माना की अन्धकार हर ओर व्यापक है, फिर भी काली रात के बाद सुबह का वादा तो खुदा का किया हुआ है - हमें उस सुबह का इंतज़ार करना होगा, जिसकी रचना हमें सवयं करनी है -अपने परिश्रम से अपने सपनो को साकार करना होगा - किसी दुसरे के आगे बिना हाथ फैलाये हुए- क्या यह संभव है?
आवश्य- ये संभव है - पर उसके लिए हमें अपने पे और अपनी सलाहियतों पे विश्वास करना सीखना होगा- हम अगर प्रण कर लें तो हम अपनी नैय्या के सवयं खेवनहार हो सकते हैं.