अगर भारतीय जनता पार्टी को चालीस प्रतिशत मत मिले तो साठ प्रतिशत विपक्ष को. आसानी से कह सकते है की अगर विपक्ष विभाजित न होता तो नतीजा कुछ और हो सकता था. मगर ये इतना सरल नहीं है जितना हम समझते हैं. दुर्भाग्य की बात है की विपक्ष की झोली में आज कोई नया खेल नहीं है, और न ही विपक्ष लैप टॉप या प्रेशर कुकर वितरण से आगे की सोच रखता है. आज का युवा वोटर वास्तव में 'अच्छे दिन' को देखना चाहता है. प्रधान मंत्री मोदी आज के समय का सबसे बड़ा 'सपनों का सौदागर' है. उसकी काट आज विपक्ष के किसी भी नेता में नहीं है. विपक्ष के घिसे पिटे मोहरे अब कोई माने नहीं रखते. राख में दबी चिंगारी से एक नयी ज्वाला के भड़कने पर ही निर्माण होगा किसी नए विपक्ष का. डेमोक्रेसी में विपक्ष आवश्यक है अंकुश के लिए.