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by TanvirSalim1
on 28/2/17
लाशों पे धरे होते हैं सिंघासन के पाए. बहुमत को मिलाना होता है वोट की राजनीति में. क़ुरबानी उनकी जो संख्या में कम है. १९८४ में क्या हुआ? वही दोहराने की कोशिश थी बाबरी मस्जिद के ताले को खोल के. २००२ का गुजरात. वही पुरानी कहानी. खून बहता है गरीब का. हिन्दू ग़रीब का और मुसलमान ग़रीब का....राज करता है खुश नसीब...हाथों से खून के धब्बे पोंछ के.